tag:blogger.com,1999:blog-5197935742392751549.post301039999181656185..comments2023-08-18T14:46:31.017+05:30Comments on HINDI VANGMAY ALIGARH हिन्दी वाडमय: कबीर और जायसी का रहस्यवाद : तुलनात्मक विवेचनशगुफ्ता नियाज़http://www.blogger.com/profile/00029405772313911177noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5197935742392751549.post-33138136203376902192008-12-15T13:11:00.000+05:302008-12-15T13:11:00.000+05:30जो इन्द्रियातीत है उसका वर्णन तो प्रतिको से ही हो ...जो इन्द्रियातीत है उसका वर्णन तो प्रतिको से ही हो सकता है। क्योकी हमारी भाषा के पास उन चिजो के लिए शब्द ही नही है जो हमारी इन्द्रियो से परे हो। अब सवाल यह पैदा होता है की जो उस परम सत्ता का वर्णन कर रहे है उन्होने स्वंय उसकी झलक पाई है या नही। मुझ जैसे अज्ञानी के लिए यह समझ पाना बडा ही कठीन है। और इस दुनिया मे जिसे देखो वही ऐसा व्यवहार करता दिखता है जैसे की वह सर्वज्ञ हो।Unknownhttps://www.blogger.com/profile/08946569807621097540noreply@blogger.com