"विमुखता"
SEEMA GUPTA
खामोशी तेरे रुखसार की
तेज़ाब बन मस्तिष्क पर झरने लगी
जलने लगा धर्य का नभ मेरा
और आश्वाशन की धरा गलने लगी
तुमसे वियोग का घाव दिल में
करुण चीत्कार अनंत करने लगा
सम्भावनाये भी अब मिलन की
आहत हुई और ज़ार ज़ार मरने लगी
था पाप कोई उस जनम का या
कर्म अभिशप्त हो फलिभुत हुआ
अपेक्षा की कलंकित कोख में
विमुखता की वेदना पलने लगी....
4 comments:
'अपेक्षा की कलंकित कोख में
विमुखता की वेदना पलने लगी....'
- मन को छू लेने वाली सुंदर पंक्तियाँ.
nice poem
"करुण चीत्कार अनंत करने लगा
सम्भावनाये भी अब मिलन की
आहत हुई और ज़ार ज़ार मरने लगी"
वैसे तो मैं इस कविता पर खुद को कमेंट देने लायक नही समझता हूं, लेकिन आपकी कविता मेरे ह्रदय को छू गई..और मज़बूर हो गया कमेंट बॉक्स में उपस्थिती दर्ज करने के लिए...आपका आभार..
शगुफ्ता नियाज़ ji thanks a lot for presenting my poem here.
regards
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