आप सभी का स्वागत है. रचनाएं भेजें और पढ़ें.
उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Saturday, November 15, 2008

दर्द हूँ मैं

SEEMA GUPTA

अश्कों से नहाया,
लहू से श्रृंगार हुआ,
सांसों की देहलीज पर कदम रख,
धडकनों से व्योव्हार हुआ,

लबों की कम्पन से बयाँ..
जख्म की शक्ल मे जवान हुआ..
कभी जिस्म पे उकेरा गया,
सीने मे घुटन की पहचान हुआ,
रगों मे बसा,
लम्हा लम्हा साथ चला,
करहाटों के स्वर से विस्तार हुआ,
हाँ, दर्द हूँ मै , पीडा हूँ मै...
मेरे वजूद से इंसान कितना लाचार हुआ....

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Friday, November 14, 2008

काफी है

SEEMA GUPTA


वफ़ा का मेरी अब और क्या हसीं इनाम मिले मुझको,
जिन्दगी भर दगाबाजी का सिर पे एक इल्जाम काफी है.
बनके दीवार दुनिया के निशाने खंजर से बचाया था,
होठ सी के नाम को भी राजे दिल मे छुपाया था,
उसी महबूब के हाथों यूं नामे-ऐ -बदनाम काफी है ...
यादों मे जागकर जिनकी रात भर आँखों को जलाते थे ,
सोच कर पल पल उनकी बात होश तक भी गवाते थे ,
मुकम-ऐ- मोह्हब्त मे मिली तन्हाई का एहसान काफी है….
कभी लम्बी लम्बी मुलाकतें, और सर्द वो चांदनी रातें,
चाहत से भरे नगमे अब वो अफसाने अधुरें है ,
जीने को सिर्फ़ जहर –ऐ - जुदाई का ये भी अंजाम काफी है

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Wednesday, November 12, 2008

तुम कहती हो प्यार करूँ मैं

धर्मवीर भारती



मैं कब हारा हूँ काँटों से, घबराया कब तूफ़ानों से ?
लेकिन रानी मैं डरता हूँ बन्धन के इन वरदानों से !
तुम मुझे बुलाती हो रानी, फूलों सा मादक प्यार जहाँ है
काली अँधियाली रातों में पूनम का संचार जहाँ है
लेकिन मेरी दुनिया में तो ताजे फूल बिखर जाते हैं
यहाँ चाँद के भूखे टुकड़े सिसक-सिसक कर मर जाते हैं
यहाँ गुलामी के चोंटों से दूर जवानी हो जाती है
यहाँ जिन्दगी महज मौत की एक कहानी हो जाती है
यह सब देख रहा हूँ, फिर भी तुम कहती हो प्यार करूँ मैं
यानी मुर्दों की छाती पर स्वप्नों का व्यापार करूँ मैं ?
यदि तुम शक्ति बनों जीवन की स्वागत आओ प्यार करें हम
यदि तुम भक्ति बनो जीवन की स्वागत आओ प्यार करें हम
लेकिन अगर प्यार के माने तुममें सीमित हो मिट जाना
लेकिन अगर प्यार के माने सिसक-सिसक मन में घुट जाना
तो बस मैं घुट कर मिट जाऊँ इतनी दुर्बल हृदय नहीं यह
अगर प्यार कमजोरी है तो विदा-प्यार का समय नहीं यह !!

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Tuesday, November 11, 2008

जिन्दगी की डाल पर

धर्मवीर भारती

जिन्दगी की डाल पर
कण्टकों के जाल पर-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता !
कोयलों से सीखता जिन्दगी के मधुर गीत
बुलबुलों से पालता हिलमिल कर प्रेम प्रीत
पत्तियों के संग झूम
तितलियों के पंख चूम
चाँदी भरी रातों में-
चन्द्र किरण डोर का डाल कर मृदुल हिण्डोला।
कलियों के संग-संग धीमे-धीमे झूलता !
-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता !
किरनें बन जाता मैं स्वर्णिम मधुमास में
शबनम उलझाता मैं मखमल की घास में
नेह से निथार कर
दोनों नयनों में प्यार की शराब भर
जिन्दगी के प्यासों के सूखे होठ सींचता।
उनके तन में बसी हुई टीस-पीर खींचता
उनके दिल का दर्द हर-उनके दिल का घाव भर
खुशी के खुमार में
मैं भी अपने दुख-दर्द की कहानी भूलता !!
-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता !!

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