तुम कहती हो प्यार करूँ मैं
धर्मवीर भारती
मैं कब हारा हूँ काँटों से, घबराया कब तूफ़ानों से ?
लेकिन रानी मैं डरता हूँ बन्धन के इन वरदानों से !
तुम मुझे बुलाती हो रानी, फूलों सा मादक प्यार जहाँ है
काली अँधियाली रातों में पूनम का संचार जहाँ है
लेकिन मेरी दुनिया में तो ताजे फूल बिखर जाते हैं
यहाँ चाँद के भूखे टुकड़े सिसक-सिसक कर मर जाते हैं
यहाँ गुलामी के चोंटों से दूर जवानी हो जाती है
यहाँ जिन्दगी महज मौत की एक कहानी हो जाती है
यह सब देख रहा हूँ, फिर भी तुम कहती हो प्यार करूँ मैं
यानी मुर्दों की छाती पर स्वप्नों का व्यापार करूँ मैं ?
यदि तुम शक्ति बनों जीवन की स्वागत आओ प्यार करें हम
यदि तुम भक्ति बनो जीवन की स्वागत आओ प्यार करें हम
लेकिन अगर प्यार के माने तुममें सीमित हो मिट जाना
लेकिन अगर प्यार के माने सिसक-सिसक मन में घुट जाना
तो बस मैं घुट कर मिट जाऊँ इतनी दुर्बल हृदय नहीं यह
अगर प्यार कमजोरी है तो विदा-प्यार का समय नहीं यह !!
2 comments:
यदि तुम शक्ति बनों जीवन की स्वागत आओ प्यार करें हम
यदि तुम भक्ति बनो जीवन की स्वागत आओ प्यार करें हम
" these particular lines have touched my heart...."
Regards
धर्मवीर भारती को पढ़कर आनन्द आ गया. आपका बहुत आभार.
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