काफी है
SEEMA GUPTA
वफ़ा का मेरी अब और क्या हसीं इनाम मिले मुझको,
जिन्दगी भर दगाबाजी का सिर पे एक इल्जाम काफी है.
बनके दीवार दुनिया के निशाने खंजर से बचाया था,
होठ सी के नाम को भी राजे दिल मे छुपाया था,
उसी महबूब के हाथों यूं नामे-ऐ -बदनाम काफी है ...
यादों मे जागकर जिनकी रात भर आँखों को जलाते थे ,
सोच कर पल पल उनकी बात होश तक भी गवाते थे ,
मुकम-ऐ- मोह्हब्त मे मिली तन्हाई का एहसान काफी है….
कभी लम्बी लम्बी मुलाकतें, और सर्द वो चांदनी रातें,
चाहत से भरे नगमे अब वो अफसाने अधुरें है ,
जीने को सिर्फ़ जहर –ऐ - जुदाई का ये भी अंजाम काफी है
2 comments:
" thanks Shagufta jee for presenting my poem on this blog"
Regards
seema gupta
सीमा जी यु तो अक्सर कोई ग़ज़ल शेर या चिटठा पड़ने के बाद उस पर अपने विचार देता रहता हूँ लेकिन आज शायद दूसरी बार आपको पढा इससे पहले भी अपने विचार लिखने में मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ी और आज मुझे शब्द नहीं मिल रहे है................,
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