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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Tuesday, November 11, 2008

जिन्दगी की डाल पर

धर्मवीर भारती

जिन्दगी की डाल पर
कण्टकों के जाल पर-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता !
कोयलों से सीखता जिन्दगी के मधुर गीत
बुलबुलों से पालता हिलमिल कर प्रेम प्रीत
पत्तियों के संग झूम
तितलियों के पंख चूम
चाँदी भरी रातों में-
चन्द्र किरण डोर का डाल कर मृदुल हिण्डोला।
कलियों के संग-संग धीमे-धीमे झूलता !
-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता !
किरनें बन जाता मैं स्वर्णिम मधुमास में
शबनम उलझाता मैं मखमल की घास में
नेह से निथार कर
दोनों नयनों में प्यार की शराब भर
जिन्दगी के प्यासों के सूखे होठ सींचता।
उनके तन में बसी हुई टीस-पीर खींचता
उनके दिल का दर्द हर-उनके दिल का घाव भर
खुशी के खुमार में
मैं भी अपने दुख-दर्द की कहानी भूलता !!
-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता !!

1 comments:

गुफरान सिद्दीकी November 14, 2008 at 4:46 PM  

मैं भी अपने दुख-दर्द की कहानी भूलता !!
-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता !!

bahut sundar bharti ji badhai apko.

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