आप सभी का स्वागत है. रचनाएं भेजें और पढ़ें.
उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Saturday, May 9, 2009

संत्रस्त

महेंद्र भटनागर

दृष्टि-दोषों से सतत संत्रास्त
अर्थ-संगति हीन,
अद्भुत,
सैकड़ों पूर्वाग्रहों से ग्रस्त
हम,
सन्देह के गहरे तिमिर से घिर
परस्पर देखते हैं
अजनबी से !
और...
अनचाहे
विषैले वायुमण्डल में
घुटन के बोझ से
निष्कल तड़पते जब —
घहर उठता तभी
अति निम्नगामी
क्षुद्रता का सिन्धु,
अनगिनत
भयावह जन्तुओं से युक्त !
मनुजोचित सभी
शालीनता के बंधनों से मुक्त !
.

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Friday, May 8, 2009

वेदना: एक दृष्टिकोण

महेंद्र भटनागर

हृदय में दर्द है
तो
मुसकराओ !
.
दर्द यदि
अभिव्यक्त —
मुख पर एक हलकी-सी
शिकन के रूप में भी,
या
सजगता की
तनिक पहचान से उभरे
दमन के रूप में भी,
निंद्य है !
धिक् है !
स्खलित पौरुष्य !
.
उर में वेदना है
तो
सहज कुछ इस तरह गाओ
कि अनुमिति तक न हो उसकी
किसी को,
सिक्त मधुजा कण्ठ से
उल्लास गाओ !
पीत पतझर की
तनिक भी खड़खड़ाहट हो नहीं
मधुमास गाओ !
सिसकियों को
तलघरों में बन्द कर
नव नूपुरों की
गूँजती झनकार गाओ !
शून्य जीवन की
व्यथा-बोझिल उदासी भूलकर
अविराम हँसती गहगहाती
ज़िन्दगी गाओ !
महत् वरदान-सा जो प्राप्त
वह अनमोल
जीवन-गंधमादन से महकता
प्यार गाओ !
.
यदि हृदय में दर्द है
तो
मुसकराओ !
दूधिया
सितप्रभ
रुपहली
ज्योत्स्ना भर मुसकराओ !
.

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Thursday, May 7, 2009

दृष्टिकोण

महेंद्र भटनागर

अतीत का मोह मत करो,
अतीत —
मृत है !
उसे भस्म होने दो,
उसका बोझ मत ढोओ
शव-शिविका मत बनो !
शवता के उपासक
वर्तमान में ही
एक दिन
स्वयं निश्चेष्ट हो रहेंगे
अनुपयोगी
अवांछित
अरुचिकर —
जो व्यतीत है
अस्तित्वहीन है !
वह वर्तमान का नियंत्रक क्यों हो ?
वह वर्तमान पर आवेष्टित क्यों हो ?
वर्तमान को
अतीत से मुक्त करो,
उसे सम्पूर्ण भावना से
जियो,
भोगो !
वास्तविकता के
इस बोध से —
कि हर अनागत
वर्तमान में ढलेगा !
अनागत —
असीम है !
.

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Wednesday, May 6, 2009

मोह-भंग

महेंद्र भटनागर

स्वीकार शायद
जो कभी भी था न
तुमको
भ्रांति उस अधिकार की
यदि आज
मानस में प्रकाशित हो गयी
सुन्दर हुआ
शुभकर हुआ !
.
अस्थिर
प्रवंचित मन !
न समझो —
प्राप्य
जीवन की
बड़ी अनमोल अति दुर्लभ
धरोहर खो गयी !
.
मूर्छा नहीं,
निश्चय
सजगता।
मोह का कुहरा नहीं,
परिज्ञान
जीवन-वास्तविकता।
.
अर्थ जीवन को मिलेगा अब
नये आलोक में,
उद्विग्न मत होना तनिक भी
शोक में !

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Tuesday, May 5, 2009

जीवन प्राप्त जो

महेंद्र भटनागर

जीने योग्य
जीवन के सुनहरे दिन —
सुकृत वरदान-से,
आनन्दवाही गान-से,
मधुमय-सरस-स्वर-गूँजते दिन
आह ! जीने योग्य !
हर पल
हर्ष पीने योग्य !
.
जीवन के
सतत प्रतिकूलता के दिन,
उदासी-खिन्नता
अति रिक्तता से सिक्त
बोझिल दिन —
अशुभ अभिशाप-से,
विष-दंश-वाही-ताप-से,
कटु विद्ध दुर्भर दिन
आह ! जीने योग्य !
हर पल
मर्ष पीने योग्य !
.
जीवन प्राप्त जो —
अच्छा
बुरा
अविराम जीने के लिए !
अनिवार्य जीने के लिए !

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Monday, May 4, 2009

विश्वास

महेंद्र भटनागर

जीवन में
पराजित हूँ,
हताश नहीं !
.
निष्ठा कहाँ ?
विश्वासघात मिला सदा,
मधुफल नहीं,
दुर्भाग्य में
बस
दहकता विष ही बदा !
.
अभिशप्त हूँ,
पग-पग प्रवंचित हूँ,
निराश नहीं !
.
क्षणिक हैं —
ग्लानि पीड़ा घुटन !
वरदान समझो
शेष कोई
मोह-पाश नहीं !

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Sunday, May 3, 2009

भिक्षा

महेंद्र भटनागर

संपीडित अँधेरा
भर दिया किसने
अरे !
बहूमूल्य जीवन-पात्र में मेरे ?
एक मुट्ठी रोशनी
दे दो
मुझे !
.
संदेह के
फणधर अनेकों
आह !
किसने
गंध-धर्मी गात पर
लटका दिये ?
विश्वास-कण
आस्था-कनी
दे दो
मुझे !
.
एक मुट्ठी रोशनी
दे दो
मुझे !

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