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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Friday, May 8, 2009

वेदना: एक दृष्टिकोण

महेंद्र भटनागर

हृदय में दर्द है
तो
मुसकराओ !
.
दर्द यदि
अभिव्यक्त —
मुख पर एक हलकी-सी
शिकन के रूप में भी,
या
सजगता की
तनिक पहचान से उभरे
दमन के रूप में भी,
निंद्य है !
धिक् है !
स्खलित पौरुष्य !
.
उर में वेदना है
तो
सहज कुछ इस तरह गाओ
कि अनुमिति तक न हो उसकी
किसी को,
सिक्त मधुजा कण्ठ से
उल्लास गाओ !
पीत पतझर की
तनिक भी खड़खड़ाहट हो नहीं
मधुमास गाओ !
सिसकियों को
तलघरों में बन्द कर
नव नूपुरों की
गूँजती झनकार गाओ !
शून्य जीवन की
व्यथा-बोझिल उदासी भूलकर
अविराम हँसती गहगहाती
ज़िन्दगी गाओ !
महत् वरदान-सा जो प्राप्त
वह अनमोल
जीवन-गंधमादन से महकता
प्यार गाओ !
.
यदि हृदय में दर्द है
तो
मुसकराओ !
दूधिया
सितप्रभ
रुपहली
ज्योत्स्ना भर मुसकराओ !
.

1 comments:

Pramendra Pratap Singh May 8, 2009 at 1:47 PM  

शब्‍दो के मोती को अच्‍छे तरीके से पिरोया है

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