दृष्टिकोण
महेंद्र भटनागर
अतीत का मोह मत करो,
अतीत —
मृत है !
उसे भस्म होने दो,
उसका बोझ मत ढोओ
शव-शिविका मत बनो !
शवता के उपासक
वर्तमान में ही
एक दिन
स्वयं निश्चेष्ट हो रहेंगे
अनुपयोगी
अवांछित
अरुचिकर —
जो व्यतीत है
अस्तित्वहीन है !
वह वर्तमान का नियंत्रक क्यों हो ?
वह वर्तमान पर आवेष्टित क्यों हो ?
वर्तमान को
अतीत से मुक्त करो,
उसे सम्पूर्ण भावना से
जियो,
भोगो !
वास्तविकता के
इस बोध से —
कि हर अनागत
वर्तमान में ढलेगा !
अनागत —
असीम है !
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3 comments:
सुन्दर कविता, किन्तु पॉप-अप विज्ञापन हटायें।
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
सत्य वचन -अतीत -मृत है !
बढ़िया है.
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