भिक्षा
महेंद्र भटनागर
संपीडित अँधेरा
भर दिया किसने
अरे !
बहूमूल्य जीवन-पात्र में मेरे ?
एक मुट्ठी रोशनी
दे दो
मुझे !
.
संदेह के
फणधर अनेकों
आह !
किसने
गंध-धर्मी गात पर
लटका दिये ?
विश्वास-कण
आस्था-कनी
दे दो
मुझे !
.
एक मुट्ठी रोशनी
दे दो
मुझे !
उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.
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2 comments:
"एक मुट्ठी रोशनी
दे दो
मुझे !" बहुत ही सुन्दर. बहुत ही अच्छा लगा. इस से ज्यादा हम कुछ लिख ही नहीं सकते
एक मुट्ठी रोशनी
दे दो
मुझे !.......
sahee dristi.
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