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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Monday, May 4, 2009

विश्वास

महेंद्र भटनागर

जीवन में
पराजित हूँ,
हताश नहीं !
.
निष्ठा कहाँ ?
विश्वासघात मिला सदा,
मधुफल नहीं,
दुर्भाग्य में
बस
दहकता विष ही बदा !
.
अभिशप्त हूँ,
पग-पग प्रवंचित हूँ,
निराश नहीं !
.
क्षणिक हैं —
ग्लानि पीड़ा घुटन !
वरदान समझो
शेष कोई
मोह-पाश नहीं !

1 comments:

Chandan Kumar Jha May 4, 2009 at 12:08 PM  

बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट रचना.बधाई.
गुलमोहर का फूल

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