विश्वास
महेंद्र भटनागर
जीवन में
पराजित हूँ,
हताश नहीं !
.
निष्ठा कहाँ ?
विश्वासघात मिला सदा,
मधुफल नहीं,
दुर्भाग्य में
बस
दहकता विष ही बदा !
.
अभिशप्त हूँ,
पग-पग प्रवंचित हूँ,
निराश नहीं !
.
क्षणिक हैं —
ग्लानि पीड़ा घुटन !
वरदान समझो
शेष कोई
मोह-पाश नहीं !
1 comments:
बहुत ही सुन्दर और उत्कृष्ट रचना.बधाई.
गुलमोहर का फूल
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