आप सभी का स्वागत है. रचनाएं भेजें और पढ़ें.
उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Friday, May 15, 2009

ईर्ष्या

महेंद्र भटनागर

ईर्ष्या
करो नहीं,
ईर्ष्या से
डरो नहीं !
.
किसी की ईर्ष्या-अभिव्यक्ति
संकेतित हो
वाचिक हो
क्रियात्मक हो
तुम्हारी सफलता
बोधिका है !
आत्म-गहनता
शोधिका है !
.
उससे त्रस्त क्यों होते हो ?
इतने अस्तव्यस्त क्यों होते हो ?
.
ईर्ष्या
जितनी स्वाभाविक है
उसका दमन
उतना ही आवश्यक है।
.
ईर्ष्या का
दलन करो,
वरण नहीं !
.
ईर्ष्या-आश्रय को
सन्तुलित करो,
प्रगति-प्रेरित करो।
उसे विकास के
अवसर दो,
उसके हलके मानस में
गरिमा भर दो।
.
फिर कोई ईर्ष्या नहीं करेगा,
फिर कोई ईर्ष्या से नहीं डरेगा।
.
जिस दिन —
मानवता
ईर्ष्या के घातों-प्रतिघातों को
सह जाएगी,
उस दिन से —
वह मात्र
संचारी-भाव-विवेचन में
महत्त्वहीन हो
काव्य-शास्त्र का साधारण विषय
रह जाएगी !
.

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Thursday, May 14, 2009

विपर्यस्त

महेंद्र भटनागर

बुद्धि के उच्चतम शिखरों तक पहुँचे
हम
विज्ञान युग के प्राणी हैं
महान
समुन्नत
सर्वज्ञ !
.
हमारे लिए
जीवन के
सनातन सिद्धान्त
शाश्वत मूल्य
अर्थ-हीन हैं !
.
हमारे शब्द-कोश में
‘हृदय’
मात्र एक मांस-पिण्ड है
जो रक्त-शोधन का कार्य करता है
तन की समस्त शिराओं को
ताज़ा रक्त प्रदान करता है,
उसकी धड़कन का रहस्य
हमारे लिए नितान्त स्पष्ट है,
कमज़ोर पड़ जाने पर
अथवा
गल-सड़ जाने पर
हम उसको बदल भी सकते हैं।
हृदय से सम्बन्धित
पूर्व-मानव का
समस्त राग-बोध
उसके
समस्त कोमल-मधुर उद्गार
हमारे लिए
उपहासास्पद हैं !
.
हमारे लिए
पूर्व-मानव की
पारस्परिक प्रणय भावनाएँ
विरह-वियोग जनित चेष्टाएँ
सब
बचकानी हैं
अस्वस्थ हैं
निरर्थक हैं !
.
यह हमारे लिए
मानव इतिहास में
समय का सबसे बड़ा अपव्यय है !
.
हमारे लिए
आकर्षण —
इन्द्रिय सुख की कामना का पर्याय !
हाव —
आंगिक अभिनय का अभ्यासगत स्वरूप,
नाट्य-शालाओं में
प्रवेश प्राप्त कर
सहज ही ग्राह्य!
प्रेमालाप —
कृत्रिम
चमत्कारपूर्ण वाणी-विलास !
मिलन —
मात्रा स्थूल इन्द्रिय सुख के निमित्त !
स्मृति —
ढोंग का दूसरा नाम
या
अभाव की पीड़ा !
प्रेम —
भ्रम / धोखा
अस्तित्वहीन
‘ढाई आखर’ का शब्द-मात्र !

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Tuesday, May 12, 2009

स्वाँग

महेंद्र भटनागर

मुझे
कृत्रिम मुसकराहट से चिढ़ है !
कुछ लोग
जब इस प्रकार मुसकराते हैं
मुझे लगता है
डसेंगे !
अपने नागफाँस में कसेंगे !
.
यही
अप्रिय मुसकराहट
शिष्टाचार का जब
अंग बन जाती है,
कितनी फीकी
नज़र आती है !
.
मुझे
इस कृत्रिम फीकी मुसकराहट से
चिढ़
बेहद चिढ़ है !
.
 

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Monday, May 11, 2009

उपलब्धि

महेंद्र भटनागर

अप्राप्य रहा —
वांछित,
कोई खेद नहीं।
.
तथाकथित
आभिजात्य गरिमा के
अगणित आवरणों के भीतर
नग्न क्षुद्रता से परिचय,
निष्फलता की
उपलब्धि !
कोई खेद नहीं।
.
सहज प्रकट
तथाकथित
निष्पक्ष-तटस्थ महत् व्यक्तित्व का
अदर्शित अभिनय;
असफलता की
उपलब्धि !
कोई खेद नहीं।
.

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Sunday, May 10, 2009

वस्तु-स्थिति

महेंद्र भटनागर

सर्वत्र
कड़वाहट सुलभ
दुर्लभ मधुरता !
सर्वत्र
घबराहट प्रकट
जीवट विरलता !
सर्वत्र
झुलझलाहट-प्रदर्शन
लुप्त स्थिरता !
सर्वत्र
आडम्बर-बनावट
दूर कोसों वास्तविकता !
.
 

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