स्वाँग
महेंद्र भटनागर
मुझे
कृत्रिम मुसकराहट से चिढ़ है !
कुछ लोग
जब इस प्रकार मुसकराते हैं
मुझे लगता है
डसेंगे !
अपने नागफाँस में कसेंगे !
.
यही
अप्रिय मुसकराहट
शिष्टाचार का जब
अंग बन जाती है,
कितनी फीकी
नज़र आती है !
.
मुझे
इस कृत्रिम फीकी मुसकराहट से
चिढ़
बेहद चिढ़ है !
.
2 comments:
aap sach ke saath hai, jo sachhe honge unhen aisee muskarahat se chidh hogee hee.
acchee Kavita. badhaee
Ranjit
"मुंह में राम बगल में छुरी" आपकी चिढ़ सही और जायज है - अच्छी सोच
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