स्वीकार
महेंद्र भटनागर
.
अकेलापन नियित है,
हर्ष से
झेलो इसे !
.
अकेलापन प्रकृति है,
कामना-अनुभूति से
ले लो इसे !
.
इससे भागना-बचना —
विकृति है !
मात्र अंगीकर करना —
एक गति है !
.
इसलिए स्वेच्छा वरण,
मन से नमन !
.
उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.
© Blogger templates ProBlogger Template by Ourblogtemplates.com 2008
Back to TOP
1 comments:
sach kaha aapne akelapan niyati hai.bahu khubsurat.
agar waqt mile to mera blog bhi dekhen.
Post a Comment