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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Wednesday, April 15, 2009

निष्कर्ष

महेंद्र भटनागर
.


उसी ने छला
अंध जिस पर भरोसा किया,
उसी ने सताया
किया सहज निःस्वार्थ जिसका भला !
.
उसी ने डसा
दूध जिसको पिलाया,
अनजान बन कर रहा दूर
क्या ख़ूब रिश्ता निभाया !
.
अपरिचित गया बन
वही आज
जिसको गले से लगाया कभी,
अजनबी बन गया
प्यार,
भर-भर जिसे गोद-झूले झुलाया कभी !
.
हमसफ़र
मुफ़लिसी में कर गया किनारा,
ज़िन्दगी में अकेला रहा
और हर बार हारा !

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