पहचान
महेंद्र भटनागर
इन अट्टालिकाओं का
गगन-चुम्बी
कला-कृत
इन्द्र-धनुषी
स्वप्न-सा
अस्तित्व
कितना घिनौना है
हमें मालूम है !
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इनकी ऊँचाइयों का रूप
कितना
क्षुद्र, खंडित और बौना है
हमें मालूम है!
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परियों-सी सजी-सँवरी
इन अंगनाओं का
अवास्तव छद्म आकर्षण
कितना सुशोभन है
हमें मालूम है !
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गौर-वर्णी
कमल-पंखुरियाँ छुअन
कितनी
सुखद, कोमल व मोहन है
हमें मालूम है !
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परिचित हम
सुगन्धित रस-भरे
इन स्निग्ध फूलों की
चुभन से,
कामना-दव से
दहकती
देह की आदिम जलन से,
वासना-मद से
महकती
देह की आदिम तपन से,
इनका बिछौना
कितना सलोना है
हमें मालूम है!
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