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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Thursday, January 29, 2009

पहल

डा. महेंद्रभटनागर

घबराए
डरे-सताए
मोहल्लों में / नगरों में / देशों में
यदि -
सब्र और सुकून की
बहती
सौम्य-धारा चाहिए,
आदमी-आदमी के बीच पनपता
यदि -
प्रेम-बंध गहरा भाईचारा चाहिए,
.
तो —
विवेकशून्य अंध-विश्वासों की
कन्दराओं में
अटके-भटके
आदमी को
इंसान नया बनना होगा।
युगानुरूप
नया समाज-शास्त्र
विरचना होगा!
तमाम खोखले
अप्रासंगिक
मज़हबी उसूलों को,
आडम्बरों को
त्याग कर
वैज्ञानिक विचार-भूमि पर
नयी उन्नत मानव-संस्कृति को
गढ़ना होगा।
अभिनव आलोक में
पूर्ण निष्ठा से
नयी दिशा में
बढ़ना होगा!
.
इंसानी रिश्तों को
सर्वोच्च मान कर
सहज स्वाभाविक रूप में
ढलना होगा,
स्थायी शान्ति-राह पर
आश्वस्त भाव से
अविराम अथक
चलना होगा!
.
कल्पित दिव्य शक्ति के स्थान पर
‘मनुजता अमर सत्य’
कहना होगा!
सम्पूर्ण विश्व को
परिवार एक
जान कर, मान कर
परस्पर मेल-मिलाप से
रहना होगा!
.
वर्तमान की चुनौतियों से
जूझते हुए
जीवन वास्तव को
चुनना होगा!
हर मनुष्य की
राग-भावना, विचारणा को
गुनना-सुनना होगा!

2 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन January 29, 2009 at 8:09 AM  

अभिनव आलोक में
पूर्ण निष्ठा से
नयी दिशा में
बढ़ना होगा!

-बहुत बढ़िया.

Udan Tashtari January 29, 2009 at 8:20 AM  

बहुत उम्दा रचना.

प्रस्तुत करने का आभार.

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