SEEMA GUPTA
हर स्वप्न एक बिलखता दर्दाना हुआ,
वक्त के छलावे से अपना याराना हुआ..
रूह सिसकती रही, जख्म मूक दर्शक ,
साँस लिए भी जैसे एक जमाना हुआ...
खूने- दिल से लिखा, अश्कों ने मिटा डाला,
तुझे भुलाने का क्या खूब बहाना हुआ....
पीडा मे नहा, ओढ़ कफ़न भटकती चाहतों का,
जिंदा जी जैसे ख़ुद को ही दफनाना हुआ..
2 comments:
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ओढ़ कफ़न जिंदा जी ख़ुद को दफनाना हुआ..
भटकती चाहतों का क्या खूब बहाना हुआ....
सिसकती रूह के छलावे से अपना याराना हुआ..
पीडा मे साँस लिए भी जैसे एक जमाना हुआ...
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