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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Thursday, March 5, 2009

मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ

सुनील गज्जाणी

किस नयन तुमको निहारू,
किस कण्ठ तुमको पुकारू,
रोम रोम में तुम्ही हो मेरे,
फिर काहे ना तुम्हे दुलारू,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ।

प्रतिबिम्ब मै या काया तुम,
दोनो मे अन्तर जानू,
हॉं, हो कुछ पंचतत्वो से परे जग में,
फिर मै धरा तुम्हे माटी क्यू ना बतलाऊ,
सुनो! तुम तिलक मै ललाट बन जाऊ,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ॥

बैर-भाव, राग द्वेष करू मै किससे,
मुझ में जीव तुझ में भी है आत्मा बसी,
पोखर पोखर सा क्यूं तू जीए रे जीवन,
जल पानी, जात-पात मे मै भेद ना जांनू,
हो चेतन, तुझे हिमालय, सागर का अर्थ समझाऊ,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ॥।

विलय कौन किसमे हो ये ना जानू,
मेरी भावना तुझ में हो ये मै मानू,
बजाती मधुर बंषी पवन कानो में हमारे,
शान्त हम, हो फैली हर ओर शान्ति चाहूं,
मित्र! तुम्हे मेरे मन की बात बताऊ॥।
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सुनील गज्जाणी
सुथारों की बड़ी गुवाड़,
बीकानरे।

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