बलबीर बन्ना
राजेन्द्र राज
जब मुस्कराते हैं
कितने कत्ल कर आते हैं
जहाँ खड़े हो जाते हैं
वहीं शुरू हो जाते हैं
शाम सहेली है इनकी
रोज़ सज-धज कर आती है
रात जब अकेली होती है
इनके घर सो जाती है
जीन्स पैन्ट और टी-शर्ट में
ये कहर ढ़ाते हैं
काला चश्मा लगा लें तो
आइटम-सोंग हो जाते हैं
इनकी अदाओं पे मरती हैं
आधी लड़कियाँ शहर की
आधी कुछ समझदार हैं
इनकी गली से गुजरती नहीं
सुबह-शाम तफ़्रीह करने
ये बाग़बां में जाते हैं
चम्पा-चमेली और जूही को
इशारों में बुलाते हैं
रीबॉक के पहनके जूते
बन्ना जब जमीन पर चलते हैं
जमाने भर की लड़कियों के
दिल के अरमान मचलते हैं
बन्ना ने कसम खाई है
जिएँगे तो ऐसे ही
माँ-बाप ने आखिर दौलत
किसलिए कमाई है
मैक्-डोनाल्ड्स में इनके लिए
एक टेबल बुक रहती है
दिलकश हसीन लड़कियाँ
आई.लव.यू. कहती हैं
बन्ना जब फिसल जाते हैं
दोनों हाथों से लुटाते हैं
अपनी जवानी को छोड़कर
बाकी सब छोड़ आते हैं
इनके दो चार चेले हैं
जो दुनिया में अकेले हैं
चलते हैं बन्ना के संग
खुली शर्ट और जीन्स तंग
एक शाम बन्ना को
लड़की एक भा गई
घर में अकेली थी
छत पर आ गई
बन्ना को देखे बिना ही
वो ऐसे शरमा गई
उसकी शादी की तारीख
जैसे क़रीब आ गई
बन्ना ने भेजा उपहार
उसने कर दिया इन्कार
बन्ना ने लगाई पुकार
लड़की ने कहा खबरदार
बन्ना का खान: खराब है
दोनों हाथों में शराब है
जो खो गया वो शबाब है
जो मिल गया बो जवाब है
बलबीर बन्ना जब मुस्कराते हैं
कितने कत्ल कर आते हैं
जहाँ खड़े हो जाते हैं
वहीं शुरू हो जाते हैं।
5 comments:
बहुत ही वर्णन लगा भाई.........ऐसे ही लिखते रहे.......!!
achhi kavita
achchha likha hai.
सुंदर रचना है | बधाई|
अवनीश तिवारी
भाई बहुत सुंदर ,दाद देनी पड़ेगी आपकी काव्य प्रतिभा की .
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