झील को दर्पण बना
SEEMA GUPTA
रात के स्वर्णिम पहर मेंझील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचलधरा भी इतराती तो होगी...
मस्त पवन की अंगडाईदरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदलमन को गुदगुदाती तो होगी.....
नदिया पुरे वेग मे बहकिनारों से टकरा टकरा
दीवाने दिल के धड़कने कासबब सुनाती तो होगी .....
खामोशी की आगोश मेरात जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पेफिसल लजाती तो होगी ......
दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
2 comments:
bahut khub khubsurat bhav
" thakyou for giving space to my poem here"
Regards
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