एक जंग हुई थी कर्बला में
- राही मासूम रजा
जैनब की आँखों में रास्ते की धूल थी, उसने अंगुलियों से आँखें मलीं ... हां, सामने मदीना ही था। नाना मुहम्मद का मदीना। जैनब की आँखें भर आयीं, लेकिन रोना किसलिए ?
बग़ल वाले महमिल का पर्दा उठाये कुलसूम का मर्सिया झांक रहा था :
ऐ नाना के मदीने,
हमें स्वीकार न कर
हमें स्वीकार न कर क्योंकि हम गये थे तो गोदें भरी थीं
और लौटे हैं तो गोदें वीरान हैं ......
एक तरफ़ से मदीना आ रहा था। दूसरी तरफ़ से जैनब का कारवां बढ़ रहा था ... और यादों का दर्द बढ़ता जा रहा था। वह कुछ कैसे बता पायेगी ? उसकी आँखों में आँसुओं की न जाने कितनी नदियां सूख चुकी थीं, उसे ऐसा लगा, जैसे सामने मदीना नहीं है, बल्कि माँ खड़ी है - बाहें, फैलाये। आँसू जैनब के गले में उतर आये- माँ, हम हुसैन को खो आये!
हुसैन। इस नाम में न जाने क्या था कि ज+बान पर आते ही घुल गया और अमृत बन कर रंगों में दौड़ने लगा और बाहों पर पड़े रस्सियों के निशान मिट गये और जैनब को ऐसा लगा, जैसे सब साथ है जैसे अब्बास और अली अकबर अब सवारियों के उतारने का बंदोबस्त करने आने ही वाले हैं। जैसे वह हुसैन की आवाज सुनने ही वाली है-बहन, उतरो, मदीना आ गया।
जैनब को वह रात अच्छी तरह याद थी जब मदीना के गवर्नर वलीद इब्ने-अकबा ने हुसैन को अपने घर बुलाया था, हुसैन तैयार हुए तो फातमी जवान भी तलवारें ले कर उठ खड़े हुए क्योंकि सब जानते थे कि वलीद ने हुसैन को क्यों बुलवाया है। वलीद के पास दमिश्क से यह फरमान आया हुआ था कि हुसैन से कहो कि सिर छुका दें और अगर वह सिर न झुकायें तो सिर काट लिया जाये। वलीद को मालूम था कि जिसे फ़ातिमा ने चक्की पीस-पीस कर पाला है और यहूदियों के बाग़ में पानी चलाकर जिसे अली ने सिर बुलंद करने का सबक़ दिया है, वह सिर नहीं झुकायेगा। यही हुआ। हुसैन उससे यह कह कर चले आये कि हुसैन कोई काम रात के अंधेरे में चुपचाप नहीं करता। सुबह को जवाब दिया जायेगा। परन्तु सुबह होने से पहले हुसैन ने मदीना छोड़ दिया।
जैनब अपने दो बेटों को लेकर भाई के साथ चली, बड़ा बेटा औन ११ साल का था और छोटा बेटा मुहम्मद १० साल का। अब्दुल्ला ने दोनों बेटों को जैनब के हवाले करके कहा था- जैनब, मैं बीमार न होता तो खुद चलता। कोई बुरा समय आ जाये तो मेरी ओर से इन लड़कों को हुसैन पर न्यौछावर कर देना।
यात्रा शुरू हुई। नीचे रेत थी, ऊपर आसमान और वहीं चमचमाता हुआ सूरज बच्चे पानी मांग रहे थे। हुसैन का घोड़ा पानी माँग रहा था और अरब के मशहूर सूरमा हुर की सेना कूफे के गवर्नर इब्ने ज्याद के हुक्म से हुसैन को घेरने के लिए आ पहुंची थी वह सेना परछाई की तरह कर्बला तक हुसैन के साथ आयी।
फुरात का पानी देख कर हुसैन ने घोड़े की लगाम खींच ली, जवानों ने अंगों के बाँध खोल दिये, बच्चे किलकारियां भर कर उछल पडे.... नहर चल रही थी। कारवां रुक गया था।
फिर ताबड़तोड़ फ़ौजें आने लगीं : सेनाध्यक्ष अमर इब्ने साद ने हुक्म दिया कि नहर के किनारे शाही सेना का पड़ाव पड़ेगा। हुसैन ने सौतेले भाई अब्बास से कहा- मैं चाहता हूं कि शाही इतिहासकार को हमारी मौत से जोड़ने के लिए कोई बात न मिले। मैं यह चाहता हूं कि वह केवल यह लिख पाये कि शाही फ़ौजों ने मुहम्मद की औलाद को क़त्ल कर दिया। अब्बास चुप हो गया। ख़ेमें उखाड़े गये और उन्हें ठंडे पानी से बहुत दूर दहकती हुई रेत में गाड़ दिया गया। हुसैन ने यही कहा था- मैं पानी के लिए लड़ना नहीं चाहता। मैंने सर झुकाने से इनकार किया। सिर न झुकाना मनुष्य का अधिकार है। मैं केवल इस अधिकार के लिए लड़ना चाहता हूँ।
हर तरफ एक ही आवाज थी- पानी! पानी! और हुसैन के कंधे जिम्मेदारी के बोझ से दुखने लगे थे।
रात को फैसला कर लिया गया कि सुबह ही लड़ाई होगी।
सबेरा हुआ। जैनब ने औन और मुहम्मद की कमर से तलवारें बांध दीं और कहा-मामू के साथ सुबह की नमाज पढ़ो। हुसैन ने नमाज+ पढ़वायी।
सामने यजीद की सेना थी। पीछे खेमों में औरतें और बच्चे थे। डेढ़ सौ सिपाही दस हजार सिपाहियों के सामने सीना ताने खड़े थे। डेढ़ सौ सिपाहियों में सबसे छोटा सिपाही १० वर्ष का मुहम्मद था और सबसे बड़ा अड़सठ वर्ष का हुसैन।
यकायक शाही फ़ौज में एक शोर हुआ। जैनब जो द्वार पर खड़ी भाई की तरफ़ देख रही थी, चौंक उठी सामने से चार सवार चले आ रहे थे। जै+नब ने हुर को पहचान लिया।
और फिर जो कुछ हुआ उसे जैनब भूल जाना चाहती थी। उसने औन और मुहम्मद को घायल हो कर गिरते देखा, उसने अली अकबर को बरछी खाते देखा। उसने अब्बास की बांहे कटते देखीं। उसने १० वर्ष के क़ासिम की लाश को घोड़ों के सुमों में आते देखा। उसने देखा कि हबीब अपनी भवों को ऊपर उठाकर रूमाल से बांध रहे हैं। उसने मुस्लिम इब्ने औसजा को तीरों से छलनी होते देखा। उसने आसमान की तरफ देखा। आसमान में सूरज अकेला था और कर्बला में हुसैन।
हुसैन कभी दिखायी देते, कभी डूब जाते। जैनब चाहती थी कि सब कुछ अपनी आँखों से देखें। सामने एक टीला था। वह टीले पर जा चढ़ी ... तीसरे पहर की नमाज का समय आ गया था, हुसैन घोड़े से उतर पड़े। जैनब ने उनका सिर सिजदे में झुकते देखा। फिर भीड़ इतनी बढ़ गयी कि टीला नीचा हो गया। जैनब कुछ न देख सकी और फिर भीड़ में एक नेजा उठा। उस पर हुसैन का सिर ... कितना ऊंचा!
... कुलसूम अपना मरसिया गुनगुना रही थी :
- नाना के मदीने
- हमे स्वीकार न कर ....
4 comments:
karbala ka wakya padkar dil bhar aaya.ya hussinnnnnnnnnnnnnnnzindabad.(javed shah_khajrana indore)
aisa hi wakya hamare hindustan me pandavo ke sath mahabharat me hua tha.korvo me "DURYODHAN" ko agar hum"YAZID"kahe to galat nahi hoga.sari ladai ka asli kaaran iman aur doulat ki zung hai.iman walo ko iman bachana to be-imaan ko doulat.......allah hame in bato se ibrat hasil karne ki tofiq ada farmaye.aamin(javed shah-javed video game khajrana,indore)
शगुफ्ता जी एक बेहतरीन पेशकश के लिए आप का बहुत बहुत शुक्रिया
सही बात है
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