यथार्थता
महेंद्रभटनागर
.
जीवन जीना —
दूभर - दुर्वह
भारी है!
मानों
दो - नावों की
विकट सवारी है!
.
पैरों के नीचे
विष - दग्ध दुधारी आरी है,
कंठ - सटी
अति तीक्ष्ण कटारी है!
.
गल - फाँसी है,
हर वक़्त
बदहवासी है!
भगदड़ मारामारी है,
ग़ायब
पूरनमासी,
पसरी सिर्फ़
घनी अँधियारी है!
.
जीवन जीना
लाचारी है!
बेहद भारी है!
1 comments:
जीवन बिंब पर बहुत ही सटीक कविता । बेहद सुन्दर रचना ।
Post a Comment