प्रबोध
. महेंद्रभटनागर
.
नहीं निराश / न ही हताश!
सत्य है -
गये प्रयत्न व्यर्थ सब
नहीं हुआ सफल,
किन्तु हूँ नहीं
तनिक विकल!
.
बार-बार
हार के प्रहार
शक्ति-स्रोत हों,
कर्म में प्रवृत्त मन
ओज से भरे
सदैव ओत-प्रोत हो!
.
हो हृदय उमंगमय,
स्व-लक्ष्य की
रुके नहीं तलाश!
भूल कर
रुके नहीं कभी
अभीष्ट वस्तु की तलाश!
हो गये निराश
तय विनाश!
हो गये हताश
सर्वनाश!
2 comments:
सुन्दर रचना है!
आपसे एक अनुरोध है कि आप पापाप विज्ञापन हटा लें अन्य तरह के विज्ञापन पर क्लिक करने को मैं तैयार हूँ! लेकिन मुझे क्या किसी को भी नहीं भाते, मुआफ़ी चाहूँगा!
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
बार-बार
हार के प्रहार
शक्ति-स्रोत हों,
कर्म में प्रवृत्त मन
ओज से भरे
सदैव ओत-प्रोत हो!
sunder rachana hai.....
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