प्रार्थना
महेंद्रभटनागर
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सूरज,
ओ, दहकते लाल सूरज!
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बुझे
मेरे हृदय में
ज़िन्दगी की आग
भर दो!
थके निष्क्रिय
तन को
स्फूर्ति दे
गतिमान कर दो!
सुनहरी धूप से,
आलोक से -
परिव्याप्त
हिम / तम तोम
हर लो!
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सूरज,
ओ लहकते लाल सूरज!
उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.
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1 comments:
बहुत ही कम शब्दों में बांधती ये रचना । धन्यवाद
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