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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Tuesday, March 24, 2009

प्रार्थना

महेंद्रभटनागर
.
सूरज,
ओ, दहकते लाल सूरज!
.
बुझे
मेरे हृदय में
ज़िन्दगी की आग
भर दो!
थके निष्क्रिय
तन को
स्फूर्ति दे
गतिमान कर दो!
सुनहरी धूप से,
आलोक से -
परिव्याप्त
हिम / तम तोम
हर लो!
.
सूरज,
ओ लहकते लाल सूरज!

1 comments:

Unknown March 24, 2009 at 1:53 PM  

बहुत ही कम शब्दों में बांधती ये रचना । धन्यवाद

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