निष्कर्ष
. महेंद्रभटनागर
.
ऊहापोह
(जितना भी)
ज़रूरी है।
विचार-विमर्श
हो परिपक्व जितने भी समय में।
.
तत्त्व-निर्णय के लिए
अनिवार्य
मीमांसा-समीक्षा / तर्क / विशद विवेचना
प्रत्येक वांछित कोण से।
.
क्योंकि जीवन में
हुआ जो भी घटित -
वह स्थिर सदा को,
एक भी अवसर नहीं उपलब्ध
भूल-सुधार को।
.
सम्भव नहीं
किंचित बदलना
कृत-क्रिया को।
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सत्य -
कर्ता और निर्णायक
तुम्हीं हो,
पर नियामक तुम नहीं।
निर्लिप्त हो
परिणाम या फल से।
(विवशता)
.
सिद्ध है —
जीवन: परीक्षा है कठिन
पल-पल परीक्षा है कठिन।
.
वीक्षा करो
हर साँस गिन-गिन,
जो समक्ष
उसे करो स्वीकार
अंगीकार!
3 comments:
आप के विचार काफी अच्छे है, हिन्दी के विकास के लिये मुझे आपके शब्दो की जरूत है, इसके लिये आप मुझे अपने लेख मेल कर सकते है,आपके सहयोग से टूटते हुए देश को बचाया जा सकता है
सून्दर प्रयास। बहुत बहुत बधाई
kathin shabd hain....magar sandesh saral hai....saralta hi prem hai.... isliye jatiltaa se bachen...(sorry)
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