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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Saturday, November 8, 2008

सच्ची सहेली

नासिरा शर्मा



रेशमा का रोते-रोते बुरा हाल था। आज वह कालेज भी नहीं गई थी। मां के बहुत मनाने पर भी उसने कल से कुछ खाया न था। मां की जान मुसीबत में थी। एक तरफ शौहर का गुस्सा और दूसरी तरफ बेटी की जिद। किस का साथ दें और किस से रुठें ? बड़ी देर तक चुपचाप बैठी रही। अचानक कुछ याद आया। सिर पर चादर डालकर वह घर से बाहर निकली और पड़ोस में रहने वाले मौलाना वहीद के घर गईं। ‘‘कहो बीबी कैसे आना हुआ ?’’ मौलाना ने तस्बीह (माला) घुमाई।‘‘बेटी की शादी तय हो रही है।’’ धीमे से रेशमा की मां बोली।
‘‘मुबारक हो....तारीख निकलवाना है ?’’
मौलाना की आंखें चमकीं।‘‘ऐसी किस्मत कहां ? बेटी शादी से मना कर रही है और उसके वालिद जिद पर हैं......आप से मदद मांगने आई हूं।’’ रेशमा की मां की आवाज भर्रा गई।‘‘माजरा क्या है ?’’ मौलाना ने भवें सिकोंडी।‘‘हमीद बटुए वाले के यहां से बात आई है। दौलतमंद आदमी है। बीवी मर गई हैं अब वह दूसरी शादी करना चाहता है। उसके पांच बच्चे हैं। बड़ी लड़की रेशमा से पांच छह साल छोटी है। मैं यह शादी रुकवाना चाहती हूं।’’ कांपती आवाज से मां बोली।‘‘अच्छा ! कायदे की बात तो यह है कि हमीद को किसी विधवा से शादी करना चाहिए। उसको भी सहारा मिल जाएगा और इसके बच्चे भी पल जाएंगे !’’ मौलवी बोले।

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