ग़ज़ल
महताब हैदर नक़वी
सुबह की पहली किरन पर रात ने हमला किया
और मैं बैठा हुआ सारा समां देखा किया
ऐ हवा ! दुनिया में बस तू है बुलन्द इक़बाल1 है
तूने सारे शहर पे आसेब2 का साया किया
इक सदा ऐसी कि सारा शहर सन्नाटे में गुम
एक चिनगारी ने सारे शहर को ठंण्डा किया
कोई आँशू आँख की दहलीज़ पर रुक-सा गया
कोई मंज़र अपने ऊपर देर तक रोया किया
वस्ल3 की शब को दयार-ए-हिज्र4 तक सब छोड़ आए
काम अपने रतजगों ने ये बहुत अच्छा किया
सबको इस मंजर में अपनी बेहिसी पर फ़ख़ है
किसने तेरा सामना पागल हवा कितना किया
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1. तेजस्वी 2. प्रेत-बाधा 3. मिलन 4. विरह-स्थल
3 comments:
"वस्ल3 की शब को दयार-ए-हिज्र4 तक सब छोड़ आए"
'इक सदा ऐसी कि सारा शहर सन्नाटे में गुम
एक चिनगारी ने सारे शहर को ठंण्डा किया"
बहुत पसंद आया ,आशा है ऐसी ही शानदार ग़जलें लिखते रहेंगे|
Aapke blog ko aaaj se follow kiya karunga.
कोई आँशू आँख की दहलीज़ पर रुक-सा गया
कोई मंज़र अपने ऊपर देर तक रोया किया
bahot khub rahi ye bhi bahot umda ghazal ,,, bahot khub .. dhero badhai aapko...
arsh
कोई आँशू आँख की दहलीज़ पर रुक-सा गया
कोई मंज़र अपने ऊपर देर तक रोया किया.
baat dil ko chhootee see lagee.
khaalee panne.
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