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Monday, December 1, 2008

सरहदे-इश्क़

SEEMA GUPTA




है ये शो'ला के या चिंगारी है,
आतश-अंगेज़ बेक़रारी है ...
यूँ निगाहों से ना गिराएँ हमें,
चोट ज़िल्लत से भी करारी है ...
के शिकन आपके चेहरे पे पड़े
दिल पे अपने ये बात भारी है ...
सरहदें इश्क़ की न ठहराएँ
इश्क़ से काइनात हारी है ....
हमने क्या कर दिया जो क़ाइल हैं
आप पर जान ही तो वारी है ...
(आतश-अंगेज़ - आग भड़काने,
उत्तेजित करने वालीज़िल्लत - अपमान,
तिरस्कारकाइनात - दुनियाक़ाइल - अभिभूतवारी - न्योछावर )

2 comments:

seema gupta December 1, 2008 at 1:00 PM  

DR.Shagufta Niyaz jee thanks a lot for presenting my poem on this blog.

Regards

विधुल्लता December 1, 2008 at 2:48 PM  

यूँ निगाहों से ना गिराएँ हमें,seemaa ji behad khoob hai aapki poem,shguphtaa gi kaa bhi aabhaarb

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