जख्म
सुनील ओझा
कहीं जख्म हो गये है कहीं छाले पड़ हुए है
अब भी मेरा दिल तरे हवाले पड़े हुए .
इश्क में मरकर भी यूं जिन्दा रहे हम
जैसे धूप में उका रंग है काले पड़े हुए .
उनके होठों का रंग है जैसे लाल किरण
है कश्मकश में देखने वाले पड़े हुए.
इश्क एक सजा है जिन्दगी जीने के लिए
जैसे मुहं में हो छाले पड़े हुए .
खामोश गुजर न यूं चमन से रूद्रपुरी
कांटे ही उठा ले कुछ हैं जो बिखरे पड़े हुए
1 comments:
अच्छे भावों को पिरोती सुंदर पंक्तियाँ
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