ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फैज़
गुलों में रंग भरे बादे-नौबहार1 चले
चले भी आओ कि गुलशन2 का कारोबार चले
क़फ़स3 उदास है यारो सबा4 से कुछ तो कहो
कहीं तो बहरे-ख़ुदा5 आज ज़िक्रे-यार चले
कभी तो सुबह तेरे कुंजे-लब6 से हो आग़ाज7
कभी तो शब सरे-काकुल से मुश्कबार8 चले
बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही
तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़मगुसार9 चले
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शबे-हिज्राँ10
हमारे अश्क तेरी आक़बत11 सँवार चले
हुज़ूरे-यार हुई दफ़्तरे-जुनूँ की तलब
गिरह में लेके गिरेबाँ का तार-तार चले
मुक़ाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जँचा ही नहीं
जो कू-ए-यार12 से निकले तो सू-ए-यार13 चले
1. नए बसंत की हवा
2. बाग-बगीचा
3. पिंजरा
4. ठंडी-मंद हवा
5. ईश्वर के लिए
6. होंठों की कोंरें
7. आरम्भ
8. रात जुल्फों की गंध से भरपूर हो
9. दुखी
10. जुदाई की रात
11. परलोक या भविष्य
12. प्रियतम की गली
13. प्रियतम की तरफ़
1 comments:
फैज़ साहेब की ये ग़ज़ल मेहदी हसन साहेब की आवाज में जब भी सुनता हूँ एक नशा सा तरी हो जाता है...सुभान अल्लाह...
नीरज
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