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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Saturday, January 3, 2009

सच्चा प्रेम

-विजय अग्रवाल




‘‘मैं तुमसे बहुत प्रेम करती हूँ।’’
‘‘लेकिन मैं तो तुमसे नहीं करता।’’
‘‘इससे क्या, लेकिन मैं तो तुमसे करती हूँ।’’
‘‘तुम नहीं जानती मुझे। सच तो यह है कि मैं तुमसे घृणा करता हूँ।’’
‘‘
शायद इसीलिए मैं तुमसे प्रेम करती हूँ, क्योंकि बाकी सभी मुझसे प्रेम करते हैं। एक तुम ही अलग हो, जो मुझसे घृणा करते हो।’’
कहते हैं कि दोनों ने अपने इस
रिश्ते को ताउम्र निभाया।

4 comments:

अजित वडनेरकर January 3, 2009 at 10:37 AM  

बहुत खूब शगुफ्ता जी...
अच्छा लगा यहां आकर...

विधुल्लता January 3, 2009 at 11:00 AM  

ji shukriyaa ...ghranaa se prem aur prem se ghranaa...

विवेक सिंह January 3, 2009 at 11:14 AM  

प्रेम और घृणा का शायद कोई सार्वभौमिक नियम नहीं है ! अच्छा लगा पढकर !

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