तुम्हारी याद के ज़ख़्म
फ़ैज़ अहमद फैज़
तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं।
हदीसे-यार1 के उन्वाँ2 निखरने लगते हैं
तो हर हरीम3 में गेसू सँवरने लगते हैं
हर अजनबी हमें मजरम4 दिखाई देता है
जो अब भी तेरी गली से गुज़रने लगते हैं
सबा से करते हैं ग़ुरबत-नसीब5 ज़िक्रे-वतन
वो चश्मे-सुबह में आँसू उभरने लगते हैं
वो जब भी करते हैं इस नुत्क़ो-लब6 की बख़ियागरी7
फ़िज़ा में और भी नग़मे बिखरने लगते हैं
दरे-क़फ़स8 पे अँधेरे की मुहर लगती है
तो ‘फ़ैज़’ दिल में सितारे उतरने लगते हैं
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1. प्रेमी के संवाद
2. शीर्षक
3. विशेष कक्ष, जहाँ पर्दा हो
4. जानने वाला
5. जिनकी किस्मत में परदेस में भटकना लिखा हो
6. शब्द और होंठ
7. सिलाई
8. पिंजरे का दरवाज़ा
1 comments:
प्यार मुहबत ये सब बातें बेकार की हैं। ये सब बातें किताब के पन्नों तक ही सीमित रहे तो अच्छा है नहीं तो दोनो पक्षों का जीवन तबाह हो जाता है। यदि किसी से प्यार है तो शादी भी उसी से होनी चाहिये। या यदि जिससे शादी हुई है उसे जमकर प्यार करे। प्यार में तडपड़ा जख्म भरना यह सब बातें जीवन और विकास की गति को रोक देता है।
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