GAZAL
फ़ैज़ अहमद फैज़
हमने सब शेर में सँवारे थे
हमसे जितने सुख़न1 तुम्हारे थे
रंगों ख़ुश्बू के, हुस्नो-ख़ूबी के
तुमसे थे जितने इस्तिआरे2 थे
तेरे क़ौलो-क़रार3 से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे
जब वो लालो-गुहर4 हिसाब किए
जो तरे ग़म ने दिल पे वारे थे
मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्ते-फ़लक5 में तारे थे
उम्रे-जाविदे6 की दुआ करते थे
‘फ़ैज़’ इतने वो कब हमारे थे
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1. संवाद 2. रूपक3. वचन-स्वीकृति 4. हीरे-मोती5. आसमान की तश्तरी6. उम्रदराज़ होने
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