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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Wednesday, December 31, 2008

GAZAL

फ़ैज़ अहमद फैज़



हमने सब शेर में सँवारे थे
हमसे जितने सुख़न1 तुम्हारे थे

रंगों ख़ुश्बू के, हुस्नो-ख़ूबी के
तुमसे थे जितने इस्तिआरे2 थे

तेरे क़ौलो-क़रार3 से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे

जब वो लालो-गुहर4 हिसाब किए
जो तरे ग़म ने दिल पे वारे थे

मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्ते-फ़लक5 में तारे थे

उम्रे-जाविदे6 की दुआ करते थे
‘फ़ैज़’ इतने वो कब हमारे थे
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1. संवाद 2. रूपक3. वचन-स्वीकृति 4. हीरे-मोती5. आसमान की तश्तरी6. उम्रदराज़ होने

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