कैसे तुम्हे भुलाऊ
SEEMA GUPTA
गर ऐसे याद करोगी मुझको,
कैसे मै जी पाउँगा ? ??
ये शब्द तुम्हारे ....
बाँध तोड़ संयम के सारे ,
बीते लम्हों के कालीन बिछाएं ,
मौन स्वरों के गलियारे मे ,
यादो के घाव पग धरते जायें,
सान्निध्य का एहसास तुम्हारा
विचलित कर मन को भरमाये ,
संकल्प तुम्हारे नर्त्य करे और ,
बोल गूंज कर प्रणय गीत सुनाये
"कैसे तुम्हे भुलाऊ "
5 comments:
शगुफ्ता नियाज़ jee,
thanks a lot for presenting my poem over here.
regards
प्रभावशाली साथॆक अभिव्य्क्ति ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
भुलाने की जरूरत ही कहां है
ब्लॉग पर छप ही इतना रहा है
खुद ब खुद भूल जाएगा
सिर्फ सीमा जी का नाम और
हिन्दी वांग्मय हिन्दी वाडमय
जो भी ठीक है, वह जरूर
याद रह जायेगा।
इसे अन्यथा न लें
वैसे चाहे कुछ भी भूलें
चाहे कुछ भी याद करें
इस कविता को
मैं कभी भुला न पाऊंगा।
@dr. ashok priyaranjan je thanks for your encouragement.
@ अविनाश वाचस्पति ji, aapke comment ka or is poem ko na bhulane ka bhut bhut shukriya.."
regards
बेहद सुंदर मनमोहनी
बधाइयां
Post a Comment