GAZAL
बशीर बद्र
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है,
बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीनों से,
तुम्हें खुदा ने हमारे लिए बनाया है
उसे किसी की मोहब्बत का एतबार नहीं,
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से,
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कराया है
कहाँ से आयी ये ख़शुबू, ये घर की ख़ुशबू है,
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है
तमाम उम्र मिरा दम उसी धुएँ में घुटा
वो इक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया है
3 comments:
बशीर बद्र जी की गज़ल के लिये शुक्रिया ।
बशीर साहब के शब्दों को पडोसने के लिए आपका साभार.
apke is blog ke madhyam se mere urdu shabdkosh ka wistar ho raha hai .nav srijun ke liye ek naya andaz mil raha hai. mai tehe dil se aapka aabhar gyapit karta hoo
sanjay sanam.
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