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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Saturday, December 27, 2008

GAZAL

बशीर बद्र





मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती ने मिला,
अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे,
बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं, घर में छोड़ आया था,
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात1 में मैंने,
बस एक शख़्स को माँगा, मुझे वही न मिला

बहुत अजीब है यें कुर्बतों2 की दूरी भी,
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला
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1.ब्रह्माण्ड, संसार। 2.समीपताओं।

3 comments:

Yogesh Verma Swapn December 27, 2008 at 9:49 PM  

bhut achcha blog hai, agar bura na lage to kahna chahoonga is ko jyada dark na rakh kar light background den. yogesg swapn-dream

अमिताभ मीत December 27, 2008 at 10:59 PM  

पसंदीदा ग़ज़ल. शुक्रिया पढ़वाने का ...

Dr. Amar Jyoti December 28, 2008 at 6:03 AM  

'वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला'
आभार एक अच्छी ग़ज़ल पढ़वाने के लिये।

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