बंजारा मन
SEEMA GUPTA
ये मन फ़िर बंजारा हुआ,
भटकने को बेकरार ,
उन्ही रास्तों पर ,
जहाँ दरख्तों के साये ,
कुछ सूखे टूटे पत्ते ,
पहचानी एक महक ,
उडता हुआ धुल का गुब्बार ,
दूर तक फैला सन्नाटा ,
यादों की किरचे ,
भीगे हुए से पल ,
फीके क़दमों के निशाँ ,
बिखरे पडे हैं लावारिस से,
उन्हें फ़िर से समेट लाने को ,ये मन फ़िर बंजारा हुआ,
2 comments:
DR.Shagufta Niyaz Jee thanks a lot for presenting my poem overe here.
Regards
सुन्दर अभिव्यक्ति।
Post a Comment