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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Monday, November 24, 2008

बंजारा मन

SEEMA GUPTA


ये मन फ़िर बंजारा हुआ,
भटकने को बेकरार ,
उन्ही रास्तों पर ,
जहाँ दरख्तों के साये ,
कुछ सूखे टूटे पत्ते ,
पहचानी एक महक ,
उडता हुआ धुल का गुब्बार ,
दूर तक फैला सन्नाटा ,
यादों की किरचे ,
भीगे हुए से पल ,
फीके क़दमों के निशाँ ,
बिखरे पडे हैं लावारिस से,
उन्हें फ़िर से समेट लाने को ,ये मन फ़िर बंजारा हुआ,

2 comments:

seema gupta November 24, 2008 at 9:19 AM  

DR.Shagufta Niyaz Jee thanks a lot for presenting my poem overe here.

Regards

शोभा November 24, 2008 at 4:21 PM  

सुन्दर अभिव्यक्ति।

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