मुंबई में आतंक
अविनाश वाचस्पति
दंगे दुख देते हैं
सुख को हर लेते हैं
जाने कौन सी खुशी देते हैं
हर आतंकी को ?
खुशी पर लगता पहरा
दुख बढ़ता जाता गहरा
हर कोई है डरा डरा सा
अब आतंकी भी है सहमा।
मर्ज कोई दवा कोई हो
जांच शरीफ की हर दफा हो
आतंकी फिर बच निकलता है
या फिर नया ही पनपता है।
बम फटता है कहीं दूर तो
सहमता है सज्जन हर कहीं
डरता है ठिठकता है पर फिर
दुगने जोश से जिंदगी को जीने।
चढ़ जाता है अगला जीना
चाहे हो जाये पसीना पसीना
दुख कभी ठहरता नहीं देख लो
जमता है पर पिघलता है तेज।
सुख जमता है फिर भी थमता है
मुंबई जो थमता नहीं कभी भी न
थमा इस दफा न थमेगा कभी
जिंदगी से कैसे हो सकता है कोई खफा।
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