आवाज़
अमृता प्रीतम
बरसों की राहें चीर कर
तेरी आवाज़ आयी है
सस्सी के पैरों को जैसे
किसी ने मरहम लगाई है...
आज किसी के सिर से
जैसे हुमा गुज़र गया
चाँद ने रात के बालों में
जैसे फूल टाँक दिया
नींद के होठों से जैसे
सपने की महक आती है
पहली किरण रात की
जब माँग में सिन्दूर भरती है...
हर एक हर्फ़ के बदन
तेरी महक आती रही
मुहब्बत के पहले गीत की
पहली सतर गाती रही
हसरत के धागे जोड़ कर
हम ओढ़नी बुनते रहे
बिरहा की हिचकी में भी हम
शहनाई सुनते रहे...
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