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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Wednesday, December 17, 2008

उषस् (एक)

नरेश मेहता

नीलम वंशी में से कुंकम के स्वर गूँज रहे !!
अभी महल का चाँद
किसी आलिंगन में ही डूबा होगा
कहीं नींद का फूल मृदुल
बाँहों में मुसकाता ही होगा
नींद भरे पथ में वैतालिक के स्वर मुखर रहे !!
अमराई में दमयन्ती-सी
पीली पूनम काँप रही है
अभी गयी-सी गाड़ी के

बैलों की घण्टी बोल रही है
गगन-घाटियों से चर कर ये निशिचर उतर रहे !!
अन्धकार के शिखरों पर से
दूर सूचना-तूर्य बज रहा
श्याम कपोलों पर चुम्बन का
केसर-सा पदचिह्न ढर रहा
राधा की दो पंखुरियों में मधुबन झीम रहे !!
भिनसारे में चक्की के सँग
फैल रहीं गीतों की किरनें
पास हृदय छाया लेटी है
देख रही मोती के सपने
गीत ने टूटे जीवन का, यह कंगन बोल रहे !!

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