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उन तमाम गुरूओं को समर्पित जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया.

Thursday, December 18, 2008

बातें

अमृता प्रीतम



आ साजन, आज बातें कर लें...

तेरे दिल के बाग़ों में
हरी चाह की पत्ती-जैसी
जो बात जब भी उगी,
तूने वही बात तोड़ ली

हर इक नाजुक बात छुपा ली,
हर एक पत्ती सूखने डाल दी

मिट्टी के इस चूल्हे में से
हम कोई चिनगारी ढूँढ़ लेंगे
एक-दो फूँफें मार लेंगे
बुझती लकड़ी फिर से बाल लेंगे

मिट्टी के इस चूल्हे में
इश्क़ की आँच बोल उठेगी
मेरे जिस्म की हँडिया में
दिल का पानी खौल उठेगा

आ साजन, आज पोटली खोल लें
हरी चाय की पत्ती की तरह
वहीं तोड़-गँवाई बातें
वही सँभाल सुखाई बातें
इस पानी में डाल कर देख,
इसका रंग बदल कर देख

गर्म घूँट इक तुम भी पीना,
गर्म घूँट इक मैं भी पी लूँ
उम्र का ग्रीष्म हमने बिता दिया,
उम्र का शिशिर नहीं बीतता

आ साजन, आज बातें कर लें...

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