हरिवंशराय ‘बच्चन’ के काव्य में विरलन का अध्ययन
डा. सुनील दत्त
विरलन: अर्थ एवं स्वरूप
विरलता अग्रप्रस्तुति का एक ऐसा अभिकरण है जो विचलन, विपथन, समानान्तरता से भिन्न है। कभी रचना में प्रयुक्त शब्द चयन, विचलन, समानान्तरता पर आधृत न होते हैं तथापि अपनी सार्थकता का अहसास कराते हुए अग्रप्रस्तुत हो जाते हैं ऐसे शब्दों को उन्मीलक शब्द (की वर्ड) की संज्ञा से अभिहित किया जाता है।1
अनेक बार साहित्यकार अपनी कृति में प्रतिपाद्य विषय से सम्पृक्त करके उन्मीलक शब्द की गहन रचना को प्रदर्शित करता है, जिसमें कृति के कथ्य में विचलन, विपथन और समानान्तरता का अभाव होता है और साथ ही वह उसे विशिष्ट पद मानता है। पदबन्ध, वाक्य तथा प्रोक्ति द्वारा स्पष्ट करता है, तब उसे विरलन के अन्तर्गत माना जाता है।
‘विरलन’ अंगे्रजी शब्द ;त्ंतमदमेेद्ध का पर्यायवाची शब्द है। इसका सामान्य अर्थ है अनोखा। किसी रचना में प्रयोग किया गया वह भाव जो सामान्य से भिन्न हो, उसे ही विरलन माना जाता है। यह प्रयोग विरल होने के कारण पाठक का ध्यान यकायक अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है।
यद्यपि पाठ की भाषिक प्रमुखता या ‘अग्रप्रस्तुति’ अर्थ से जुड़कर कभी ‘विचलन’ के सहारे उपस्थित होती है, तो कभी ‘विपथन’ के सहारे और कभी ‘समानान्तरता’ के सहारे, किन्तु कृति अथवा पाठ में कभी-कभी ऐसी स्थिति भी उत्पन्न होती है जब वहाँ न तो ‘विचलन’ होता है, न ही विपथन और न ही समानान्तरता, फिर भी शब्द प्रमुख होकर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए अग्रप्रस्तुत हो जाते हैं। वस्तुतः ऐसे शब्द ‘उन्मीलक’ शब्द होते हैं, जो कृति अथवा पाठ की गहन संरचना से जुड़कर अर्थवत्ता का संचालन करते हैं। इनके हाथ में कृति अथवा पाठ के कथ्य का नियंत्राण-सूत्रा होता है। कृति अथवा पाठ में शब्द प्रयोगों की प्रायः दो कोटियाँ की गई हैं- 1. प्रतिपाद्य शब्द 2. उन्मीलक शब्द। प्रतिपाद्य शब्द किसी कृति अथवा पाठ में अनेकशः आवृत्त होते हैं। इसके विपरीत उन्मीलक शब्दों के प्रयोग विरल होते हैं। प्रतिपाद्य शब्द में क्रियाशीलता को सदैव समानान्तरता के अभिकरण के सहारे रेखांकित किया जाता है, किन्तु उन्मीलक शब्द को सदैव विचलन के सहारे रेखांकित नहीं किया जा सकता। यदि अव्याकरणिकता और अस्वीकार्यता उसके मूल में नहीं है तो विचलन नहीं होगा और यदि रचनाकार की ‘प्रायिक’ प्रत्याशित पद्धति के समनुरूप है तो विपथन भी नहीं होगा।
अतः विरल शब्द कृति में अन्य शब्दों की भाँति अनेकशः आवृत्त नहीं होते अपितु विरल होते हैं और कृति को सार्थकता प्रदान करते हैं। यह विरलता शब्द, वाक्य और प्रोक्ति स्तर पर दिखायी देती है।
शेष भाग पत्रिका में..............
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