पितृसत्तात्मक व्यवस्था का दस्तावेज: ‘तीसरी सत्ता’
कुशम लता
गिरिराज किशोर हिन्दी-साहित्य के अग्रणी कथाकार हैं। उन्होंने समस्त सामाजिक, राजनीतिक चेतना और विसंगतियों-अन्तर्विरोधो को गहरी संवेदनशीलता और तर्कपूर्ण चिन्तन के साथ प्रस्तुत किया है। लेखक के अनुभव और संवेदना का एक पक्ष स्त्री-पुरुष संबंधों से भी जुड़ता है जिसका अंकन विशेष रूप से ‘तीसरी सत्ता’ उपन्यास में मिलता है। पति-पत्नी संबंधी पारम्परिक एवं नयी मान्यताओं की टकराहट इस उपन्यास अर्थ से इति तक विद्यमान है। नारी के व्यक्तिगत स्वातंत्रय और पारम्परिक पुरुष-दृष्टि के संघर्ष के अन्त में नारी अपने में निहित ममता और प्रेम के कारण सिर झुका लेती है। यह स्वीकृति पराजय को व्यक्त नहीं करती है बल्कि अपने में निहित मातृत्व की महिमा को व्यक्त करती है। इसलिए यह उपन्यास वर्तमान की नारी के स्वातंत्रय के साथ पितृसत्तात्मक व्यवस्था को भी उकेरता है। इसके अलावा यह निम्नवर्गीय वफादारी, मध्यवर्गीय चालाकी आदि मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है।
समाज में आये दिन होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव जीवनबोध को नयी दिशाओं, दशाओं और संभावनाओं से भरता रहता है, पुरुष और स्त्री इन परिवर्तनों के भोक्ता हंै। नियति से ही पुरुष और स्त्री के जीवन में जो भेद है उसे पुरुष ने और भी अधिक विषम बना दिया है। परन्तु नारी जागरण की दिशाओं और संभावनाओं में प्रगति होेने के कारण नारी जीवन और जगत में मूल्यगत संक्रांति हुई है क्योंकि महिलाओं की शिक्षा और रोजगार के अवसरों में काफी वृद्धि हुई है। परिवर्तित परिस्थितियों के कारण स्त्री की भावनाओं, विचारों, विवाह, प्रेम, यौन संबंधों, सामाजिक परम्पराओं, धार्मिक विश्वासों तथा स्त्राी-पुरुष चरित्र की नैतिकता के प्रति दृष्टिकोण मंे बड़ा परिवर्तन दिखायी देता है। बेटी हो या माँ, बहन हो या पत्नी सभी संबंधों में पुरुष के प्रति उसके दृष्टिकोण में अंतर आ गया है परन्तु पुरुष उसके इस परिवर्तित रूप को स्वीकार करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है, अतः स्त्री का जीवन तनावग्रस्त, द्वंद्वपूर्ण, पेचीदा और संक्रात हो गया है।1
गिरिराज किशोर का ‘तीसरी सत्ता’ उपन्यास सन् 1982 ई. में प्रकाशित हुआ है। आज के आधुनिक एवं विज्ञान युग में भारतीय नारी एवं उसके चरित्रा के संबंध में आज भी रूढ़िवादी संकीर्ण दृष्टिकोण है। पुरुष सत्ता प्रधान वैचारिकता वर्गेतर नारी-पुरुष के संवेदनात्मक संबंधों को संशय एवं हिकारत की दृष्टि से देखती है। इस तरह के अन्तर-वर्गीय नारी-पुरुष के संवेदनात्मक, भावात्मक संबंधों के प्रति पुरुष प्रधान मानसिकता को इस उपन्यास में उभारा है। ‘‘गिरिराज किशोर की लेखनी से निकलने वाली यह रचना अपने संदर्भों को तब तक विकसित करती रहेगी जब तक मानव की सोच और व्यवहार को व्याख्यायित करने की संभावना है।’’2 ‘तीसरी सत्ता’ परम्परागत त्रिकोणात्मक उपन्यास से इस अर्थ में भिन्न है कि इसमें रमा और रामेसर के बीच पनपा संबंध मूलतः शंका और लांछन की हवा पाकर ही विकसित होता है। ‘‘मदन की अतिरंजित रूप से शंकालु प्रवृत्ति और आस पास के लोगों की लांछन भरी फुसफुसाहट उन दोनों को करीब लाकर इस संबंध के बारे में अतिरिक्त रूप से सजग बना देती है। अन्यथा जैसी उन दोनों की स्थिति है, पति और पत्नी के रूप में, उसमें इस तीसरी सत्ता के प्रवेश और उसकी सशरीर उपस्थिति के लिए संभावना बहुत कम है।’’3
डाॅ. रमा जिस अस्पताल में काम करती है उसी अस्पताल में रामेसर एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है। अस्पताल में काम के पश्चात् वह एक पुरानी मोटर चलाता
शेष भाग पत्रिका में..............
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