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Sunday, October 24, 2010

मुक्तक काव्य

डा. बशीरूद्दीन एम. मदरी

साधारण मानव भी विचारशील और संवेदनशील होता है। किंतु वह अपनी अनुभूति को छंदोबद्ध करके संवेद्य नहीं बना सकता। जैसा कि कवि काव्य सर्जन द्वारा कर सकता है।1 यानी मनुष्य के आंतरिक भावोद्वेलन की मुखर अभिव्यक्ति को कवि ही सार्थक ध्वनि दे सकता है। प्राचीनकाल से मनुष्य अपनी गहरी भावना को बार-बार शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्ति करते आया है। कविता हो या काव्य दरअसल मनुष्य की निजी एकांतिक संपत्ति है। इसी को तुलसीदास ने स्वान्त सुखाय कहा। चाहे काव्य या कविता में कवि अपने स्वप्नों, आदर्शाें अपनी चिंताओं, अपने विचारों और जीवनानुभूतियों को शब्दों के माध्यम से साकार कर आनंदित होता है। यद्यपि तुलसीदास बड़े कवि माने जाते हैं तो केशवदास शब्दों से चमत्कृत जनकतः काव्य कर काव्य खिलाड़ी माने जाते हैं। वास्तव में कवि स्वभाव से सौंदर्य प्रेमी होने के कारण अपनी रचना मंे सत्यम् शिवम् सुंदरम् को प्रदान करते हुए कविता को उसकी परिभाषा तक ठहरा देता है। इन तीनों गुणों के कारण कविता महानता प्राप्त करती है।

महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार किसी प्रभावोत्पादक और मनोरंजन लेख या वक्रोक्ति ही काव्य जीवित का नाम कविता है और नियमानुसार तुली हुई स्तरों का नाम पद्य है।2 वे कहते हैं कि जिस पद्य को पढ़ने या सुनने से चिद्द पर असर नहीं होता वह कविता नहीं बल्कि नपी-तुली शब्द स्थापना मात्रा।

पहले का जागरूक संवेदनशील कवि अपनी एक कविता की व्याख्या दूसरी कविता में और दूसरी की व्याख्या तीसरी कविता में करता जिससे पाठक को बांधे रखने की कला वह अच्छी तरह जानता था। किंतु आज का समकालीन कवि मानवीय नियति में परिवर्तन देख वह उसी धरातल पर लिखना चाहता है जिसे आज की पीढ़ी चाहती हो। इसी के समर्थन में आधुनिक काव्य धारा जो सन् 1970 ई. के आसपास भारतेन्दु के प्रयत्नों से आरंभ हुई। ब्रजभाषा आधुनिक समस्याओं की अभिव्यक्ति के लिए अनुकूल न होने के कारण नई समस्याओं को अभिव्यक्ति देने के लिए एक नई भाषा की खोज में खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। लेकिन इसके पूर्व पुरानी काव्य भाषा-शैली की अपेक्षित पूजा होती थी। जिसकी पुनव्र्याख्या के द्वारा भारतीय जन को उसके अतीत की वास्तविकता से परिचय कराया जाता था। जिसका श्रेय स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परहंस, महात्मा गांधी को जाता है। क्योंकि ये लोग भारतीय जन जागरण के परिशोधन और व्याख्यता समझे जाते हैं। इसी आधार पर सारे इतिहास सारे चरित्रों की नए सिरे से व्याख्या होने लगी। इसी व्याख्या और परिशोध के परिणाम आधुनिक भारतीय हिन्दी साहित्य और हिन्दी की कविता है। जिसमें हरिऔंध, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी की भूमिका अहम् रही। इन कवियों ने भारतीय इतिहास पुराण की नयी व्याख्या को अपनी रचनाओं में प्रतिष्ठित किया। आज हिन्दी कविता ऊँची कगार पर इसलिए है जिसकी तेजी की पकड़ मात्रा से भाषा शैली अभिव्यक्ति और कवि के निजी अनुभवों में अनेक काव्य आंदोलन आए। इनमें छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता जिसकी प्रमुख धाराएं है। इसमें प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी आदि उन्नायक कवियों मंे से है। इसी कड़ी का विकास जिन कवियों में देखा जाता है उनमें बच्चन, दिनकर, नरेन्द्र शर्मा, गिरिश कुमार माथुर और शिवमंगल सिंह सुमन आदि की गिनती होती है। इस तरह हिन्दी काव्य परंपरा की आधुनिक काव्यधारा ने पिछले सौ वर्षाें में हज़ार की दूरी तय की।3 आज संसार की किसी भी भाषा की कविता के समकक्ष की दावेदार बन सकती। मुक्तक काव्य तारतम्य के बंधन से मुक्त होने के कारण (मुक्तेन मुक्तकम) मुक्तक कहलाता है उसका प्रत्येक पद स्वतः पूर्ण होता है।4 यदि इसकी परिभाषा पर प्रकाश डाला जाता है तो हमें संस्कृत काव्य शास्त्री ग्रंथांे की ओर उन्मुख होना पड़ेगा। जिसमें मुक्तक के लिए ऐसा कहा गया है कि- मुक्तक वह श्लोक है जो वाक्यांतर की अपेक्षा नहीं रखता।

शेष भाग पत्रिका में..............

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