प्रयोगवाद और अज्ञेय
डा. रजनी सिंह
प्रयोगवादी कविता हिन्दी काव्य क्षेत्रा का एक आंदोलन विशेष है। प्रयोगवादी कविता आधुनिकता बोध सम्पन्न मानवतावादी कविता है, मानव नियति का साक्षात्कार उसका लक्ष्य है। कविता संप्रेषण व्यापार है, कवि भाषा नहीं शब्द लिखता है। काव्य में सभी गुण शब्द के गुण है। प्रयोगवाद में वस्तु और शिल्प का समान महत्त्व है वस्तु संप्रेष्य है विषय नहीं। वस्तु से रूपाकार को अलग नहीं किया जा सकता।
प्रयोगवादी कविता मानवतावादी कविता है और उसकी दृष्टि यथार्थवादी है, उसका मानवतावाद मिथ्या आदर्श परिकल्पना पर आधारित नहीं है। वह यथार्थ की तीखी चेतना वाले मनुष्य को उसके समग्र परिवेश में समझने-समझाने का वैदिक प्रयत्न करती है। प्रयोगवाद में नया कुछ भी नहीं होता है। हो ही क्या सकता है, केवल संदर्भ नया होता है और उसमें से नया अर्थ बोलने लगता है। विवेक की कसौटी पर खरी उतरने वाली आस्थाएं ही ग्राह्य हो सकती हैं।
‘‘हिन्दी में प्रयोगवाद का जन्म सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा सम्पादित तार सप्तक से माना जाता है। सर्वप्रथम अज्ञेय ने ही कविता को प्रयोग का विषय स्वीकार किया। उनका मत है कि प्रयोगवादी कवि सत्यान्वेषण में लीन हैं। वह काव्य के माध्यम से सत्य का अन्वेषण कर रहा है।’’1
विचारणीय बात यह है कि प्रयोग क्यों और किसलिए? इसमें संदेह नहीं कि परिवर्तित परिस्थिति ने संवदेनशील प्राणी को झकझोर दिया था। उसमें आत्मान्वेषण की प्रवृत्ति जाग उठी थी। वैज्ञानिक दृष्टि ने जीवन को बौद्धिक जागरण के लिए विवश कर दिया था। जीवन के सभी मूल्य विघटित हो गए थे तथा इन मूल्यों के प्रति अनास्था उत्पन्न हो गयी थी। प्रयोगवाद में उसी सत्य की खोज और प्राप्त सत्य को उसी रूप में संप्रेषित करने का कार्य हो रहा था।
इसके बार में अज्ञेय का कहना है कि- ‘‘हम वादी नहीं रहें, न ही हैं, न प्रयोग अपने आप में ईष्ट या साध्य है। अतः हमें प्रयोगवादी कहना उतना ही सार्थक या निरर्थक है जितना कवितावादी कहना।’’2
तमाम ऊहापोह के बावजूद प्रयोगवाद प्रतिष्ठित हो चुका है। चाहें राग भाव में चाहें द्वेष भाव से। वस्तुतः आधुनिक परिवेश विघटन, संत्रास टूटन, अकेलापन और कुरूपता है, जिसमें आज का मानव कीड़े की तरह कुलबुला रहा है। वाह्य यथार्थ की प्रमाणिक अनुभूति आज की कविता का मूल स्वर बन गया है।
‘‘उस युग में भी कवियों का एक ऐसा वर्ग था, जिसने देश की समस्या को यथार्थ दृष्टि से देखना शुरू कर दिया था। वे जिस प्रकार अपने युग के यथार्थ के प्रति सजग थे, उसी स्तर का उनमें अपने कवि कर्म के दायित्व का भी मनन था।’’3
ऐसे कवियों के नेता अज्ञेय थे। अज्ञेय ने अपनी रचनाओं में मानव व्यक्तित्व की स्वाधीनता सर्जनात्मकता और दायित्व को प्रभावशाली रूप में करते हुए युग बोध को गहन संवेदना के ग्रहण करने की प्रक्रिया तथा उसकी अभिव्यक्ति को कवि कर्म की प्रमुख समस्या के रूप में घोषित किया। इसलिए पांचवे दशक की प्रमुख काव्यधारा प्रयोगवादी कवियों की
शेष भाग पत्रिका में..............
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